शहीद भगत सिंह महाविद्यालय का हिन्दी विभाग अपनी विशिष्ट पहचान रखता है | विभागाध्यक्ष डॉ. कमलेश कुमारी सहित हिन्दी विभाग में कुल 13 प्राध्यापक कार्यरत हैं | सभी अपने-अपने विषय के विशेष ज्ञाता हैं | लगभग सभी प्राध्यापक अध्यापन के अतिरिक्त अन्य क्षेत्रों में भी अपनी विशिष्ट पहचान बनाए हुए हैं | हिन्दी विभाग के प्राध्यापकों का प्रकाशन कार्य हिन्दी जगत में विख्यात हैं | अनेक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित विचारपूर्ण लेखों के लिए हिन्दी विभाग जाना जाता है | प्रतिवर्ष हिन्दी साहित्य के विभिन्न विषयों के प्रसिद्ध विद्वानों एवं विचारकों को महाविद्यालय में आमंत्रित कर विद्यार्थियों का मार्गदर्शन किया जाता है | इन विद्वानों की सूची मंा प्रो. नामवर सिंह, प्रो. निर्मला जैन, प्रो. हरिमोहन शर्मा, अनामिका, उदय प्रकाश आदि के नाम शामिल हैं | इन विद्वानों ने समय-समय पर आकर विभाग की गरिमा बढ़ाई है | हाल ही में डॉ. कमलेश कुमारी और विभाग के अन्य प्राध्यापकों के सहयोग से दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया | संगोष्ठी अपने आप में महत्वपूर्ण एवं ऐतिहासिक रही | इस संगोष्ठी में राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिभागियों की भागीदारी ने अपना अलग ही प्रतिमान स्थापित किया |
हिन्दी विभाग विद्यार्थियों के हित में निरंतर विविध गतिविधियों के साथ सक्रिय रहता है | प्रतिवर्ष छात्रों की प्रतिभा को सामने लाने के लिए अनेक साहित्यिक-सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है | इन आयोजनों में हिन्दी विभाग का वार्षिकोत्सव ‘साहित्योत्सव’ प्रमुख है, जिसमें वाद-विवाद, प्रश्नोत्तरी, कविता-पाठ, निबंध-लेखन आदि प्रतियोगिताएँ शामिल हैं | इन प्रतियोगिताएं में न केवल महविद्यालय के विद्यार्थी ही भाग लेते हैं, बल्कि अन्य महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों के विद्यार्थी भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं | आगे भी इस प्रकार के कार्यक्रमों के आयोजन के लिए हिन्दी विभाग गतिशील है | अपने विशिष्ट कार्यक्रमों एवं हिन्दी जगत में अपनी सक्रियता के लिए हिन्दी विभाग सदैव अपनी पहचान बनाए रखेगा |
- Prof. Sunil Kumar Tiwari
- Prof. Kamlesh Kumari
- Dr. Kumar Bhasker
- Dr. Jay Singh Meena
- Prof. Dinesh Ram
- Dr. Kedar Prasad Meena
- Dr. Santosh Kumar
- Dr. Hemant Kumar Himanshu ( Teacher Incharge)
- Dr. Rajkumar Rajan
- Dr. Pratima
S. No | Department | Title of the Project | Duration of the Project | Name of the Investigator(s) | Sponsoring Agency | Sanctioned Amount (Rs.) | Status |
1. | Hindi | Influence of Electronic Media on Print Media: In the Context of Editorial Page | One Year |
| University of Delhi | 4 Lac | In-Progress |
Name | Department | Publisher | Book |
Dr. Sunil Tiwari | Hindi | Kitabghar,Delhi | |
Dr. Bageshri Chakradhar | Hindi | Tansen | |
Makrand Hee Thheek Hai | |||
Vyaavahaarik Sameeksha Kaa Pahalaa Kadam | |||
| Sameeksha Maane Gyaan Raashi | ||
Dr. Kamlesh Kumari | Hindi | Samantwaad Aur Kabeer
|
|
Manav Moolyon Ki Avdharna Aur Sant Dadu Ka Kavye |
| ||
Pracheen Aur Poorvamadhyakaleen Kavita(co-edited) |
| ||
Uttarmadhyakaleen Kavita |
| ||
Text Book ‘Hindi Gadhye-A’ for B.A. (P) Sem-Ist Year, University of Delhi(co-edited) |
| ||
Dr. Kumar Bhaskar | Hindi | Sanjay Prakashan, New Delhi | |
Dr. Kedar Prasad Meena | Hindi | आदिवासी : समाज,साहित्य और राजनीति, अनुज्ञा बुक्स, 1/ 10206, वेस्ट गोरख पार्क, शाहदरा,दिल्ली-110032, ISBN-97893839662051,2014 | |
आदिवासी विद्रोह : विद्रोह परंपरा और साहित्यिक अभिव्यक्ति की समस्याएं, अनुज्ञा बुक्स, 1/ 10206, वेस्ट गोरख पार्क, शाहदरा,दिल्ली-110032, ISBN- 9789383962143, 2015 | |||
क्रांतिकारी आदिवासी-आजादी के लिए आदिवासियों का संघर्ष (संपादित), साहित्य उपक्रम-www.sahityaupkram.com, ISBN:978818235,2012 | |||
|
|
|
|
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग एवं भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसन्धान परिषद् के सहयोग से शहीद भगत सिंह महाविद्यालय द्वारा ‘संस्कृति : सत्ता और स्वाधीनता’ विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया | इस संगोष्ठी में यह बात बार-बार उभर कर आई कि संस्कृति अपने स्वभाव में ही बहुल होती है | बीज वक्तव्य में अशोक वाजपेयी ने इस बात पर इसरार किया कि भारत को उसकी बहुवचनीयता और खुलेपन ने ही बचाया है | आज संस्कृति की इस बहुलता को सबसे बड़ा खतरा बाज़ार द्वारा परोसी जा रही एकरूपता से है | इस एकरूपता से व्यक्ति की गरिमा का क्षरण होता है | इस बात को आगे बढ़ाते हुए मदन सोनी ने कहा कि शब्द और साहित्य की सत्ता तब तक अधूरी है, जब तक वे भूमण्डलीकरण द्वारा पैदा की जा रही परिस्थितियों के प्रति प्रतिकृत नहीं होते | बाज़ार की सत्ता और पितृसत्ता के गठजोड़ पर चिंता ज़ाहिर करते हुए रोहिणी अग्रवाल ने बहुत विस्तार से इस बात पर प्रकाश डाला कि किस प्रकार पितृसत्ता की सांस्कृतिक निर्मितियों को बाज़ार उत्सवधर्मी और लोकप्रिय बना रहा है | श्यौराज सिंह बेचैन ने भी चिंता ज़ाहिर की कि शिक्षा का बाज़ारीकरण दलितों की मुक्ति के मार्ग में सबसे बड़ा रोड़ा है |
अपने बीज वक्तव्य में अशोक वाजपेयी ने सत्ता के अनेक रूपों का ज़िक्र किया | उन्होंने बताया कि सत्ता के भी अंतर्विरोध होते हैं | निहितार्थ संभवतः यह था कि सत्ता के अंतर्विरोधों के जरिए उससे कुछ रचनात्मक करवाया जा सकता है | आलोचना की सत्ता के होने से इन्कार करते हुए प्रभाकर श्रोत्रिय ने आलोचना, सत्ता और रचना को सहधर्मी बताया | हालांकि उनके इस मत से रचना और आलोचना के जटिल सम्बन्ध की पहचान नहीं होती | अभय कुमार दूबे और सुधीर चन्द्र ने रेखांकित किया कि भाषा की स्वाधीनता को अंग्रेजी के वर्चस्व से खतरा है | हिन्दी भाषा की ताकत उसकी संस्कृत से मुक्ति में नहीं है, बल्कि उसके साथ प्रगाढ़ सम्बन्ध में है | भारतीय संस्कृति की बहुलता को रेखांकित करते हुए प्रो. वीरभारत तलवार ने संस्कृति को आजीवक परम्परा से जोड़ते हुए वर्णाश्रम, पुनर्जन्म और वेद पुराण को प्रमाण मानने की मनोवृत्ति से मुक्ति को दलित-चिंतन की स्वतंत्रता बताया | शास्त्र की बहुलता और उसके लोकाधारित होने की बात कहकर इस धारणा का खंडन किया | साथ ही उन्होंने लोक और शास्त्र के संवाद की समृद्ध परम्परा को रेखांकित किया | यहाँ तक कि कलाओं में भी रागों और नवाचार की बहुलता की ओर इशारा किया | रंगमंच इस बहुलता का शानदार उदाहारण है, जो दूसरे उपादानों के सहयोग के बिना संभव ही नहीं है | इन विचारों के साथ यह संगोष्ठी अपने आप में महत्वपूर्ण एवं ऐतिहासिक रही | विभागाध्यक्ष डॉ. कमलेश कुमारी सहित सम्पूर्ण विभाग और महाविद्यालय के प्राध्यापकों एवं विद्यार्थियों का प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष सहयोग इस संगोष्ठी की सफलता का मूल था | आगे भी इस प्रकार के कार्यक्रमों के आयोजन के लिए हिन्दी विभाग गतिशील और प्रतिबद्ध है |